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पंचतत्व में विलीन हुए आचार्य विद्यासागर, नम आंखों से शिष्यों ने दी अंतिम विदाई

जन-जन के संत परम पूज्य आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महामुनिराज ने रात 2.30 बजे संल्लेखना पूर्वक समाधि (देह त्याग दी) ले ली है। छत्तीसगढ के डोंगरगढ स्थित चन्द्रगिरी तीर्थ पर उन्होंने अंतिम सांस ली है।

इस खबर से देशभर में शोक की लहर है। आचार्यश्री पिछले कुछ दिन से अस्वस्थ थे। पिछले दो दिन से उन्होंने अन्न जल का पूरी तरह त्याग कर दिया था। आचार्यश्री अंतिम सांस तक चैतन्य अवस्था में रहे और मंत्रोच्चार करते हुए उन्होंने देह का त्याग किया है। समाधि के समय उनके पास पूज्य मुनिश्री योगसागर जी महाराज, श्री समतासागर जी महाराज,  श्री प्रसादसागर जी महाराज संघ सहित उपस्थित थे।

देश भर के जैन समाज और आचार्यश्री के भक्तों ने उनके सम्मान में आज एक दिन अपने प्रतिष्ठान बंद रखने का फैसला किया है। रात को सूचना मिलते ही आचार्यश्री के हजारों शिष्य डोंगरगढ के लिए रवाना हो गए हैं।

आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था। उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में अपने गुरु आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ली थी। आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था। आचार्यश्री 1975 के आसपास बुंदेलखंड आए थे। वे बुंदेलखंड के जैन समाज की भक्ति और समर्पण से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना अधिकांश समय बुंदेलखंड में व्यतीत किया।

आचार्यश्री ने लगभग 350 दीक्षाएं दी हैं। उनके शिष्य पूरे देश में विहारकर जैनधर्म की प्रभावना कर रहे हैं।

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