भोपाल- मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर का 89 साल की उम्र में निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार थे. कुछ दिन पहले उन्हें भोपाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. गौर को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. इसके अलावा उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. गौर ने 2004 में उमा भारती के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद प्रदेश की कमान संभाली थी. वे 1977 से 2013 तक भोपाल की गोविंदपुरा सीट से लगातार 10 बार विधायक रहे थे. गौर के निधन से एमपी की सियासत के एक युग का अंत हो गया. गौर के निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर देशभर की राजनीति के दिग्गजों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.
बाबूलाल गौर की राजनीति पर गौर किया जाए तो संघर्ष और सबक छिपा हुआ है. गौर मध्य प्रदेश की सियासत में सबसे लंबे समय तक विधायक रहने वाले शख्स हैं. मजदूर से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर बाबूलाल गौर ने जिंदादिली के साथ पूरा किया. गौर साहब एक अजय नेता के रूप में थे. उनका ऐसे चले जाना भारतीय जनता पार्टी के लिए नहीं बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के लिए बड़ी क्षति है. बुलडोजर मंत्री के नाम पर बाबूलाल गौर की ख्याति हमेशा जनता के बीच में रही है. जनता के बीच में खड़े होना और इमानदारी से उनकी सेवा करना ही गौर साहब का धर्म था.
बाबूलाल गौर ने अपना राजनीतिक जीवन वामपंथी पार्टी से शुरू किया था. पार्टी का मजदूर संगठन अक्सर मिल में हड़ताल कर देता था, जिससे रोजाना के हिसाब से तनख्वाह कट जाती थी. कुछ समय तक ऐसा चला. देखा तो हर महीने 10 से 15 रुपए तनख्वाह हड़ताल के कारण ही कट जाती थी, इससे मजदूरों को काफी नुकसान होता था. इस पर गौर ने लाल झंडा छोड़कर कांग्रेस का संगठन इंटक ज्वाइन कर लिया, लेकिन वहां भी मजदूर हित में काम नहीं होते देखा तो संघ का भारतीय मजदूर संघ ज्वाइन किया.
बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्री बनने का किस्सा भी रोचक भरा था. 2003 में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा भारी बहुमत से 10 साल बाद सत्ता में लौटी. उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं. एक साल के अंदर ही उनके नाम कर्नाटक के हुबली शहर की अदालत से वॉरंट जारी हो गया. 10 साल पुराने मामले में उमा भारती को भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के कहने पर इस्तीफा देना पड़ा था और बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने. इस बीच बाबूलाल गौर के खिलाफ पार्टी नेतृत्व को तमाम तरह की शिकायतें भी मिलने लगीं. बीजेपी ने बीच का रास्ता निकालते हुए दोबारा उमा भारती को मौका देने की जगह शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया. तब शिवराज सिंह चौहान पार्टी के महासचिव थे. आखिरकार 2005 में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने.
गौर साहब अपने कामों की वजह से भाजपा ही नहीं बल्कि दूसरे दलों के भी करीब थे. उनके कांग्रेस नेताओं से भी काफी करीबी सम्बन्ध थे. यही वहज है कि हर कोई गौर के निधन को बड़ी क्षति मान रहे है.
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