मध्य प्रदेश.वर्ष 1993-2003 के बीच जिस तरह कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में विधानसभा सचिवालय की भर्तियों पर सवाल उठे थे और मामला एफआईआर तक पहुंचा था, ठीक वैसे ही हालात एकबार फिर दिख रहे हैं. चौदहवीं विधानसभा के कार्यकाल में अब तक जितनी भी भर्तियां हुईं हैं,उस पर सवाल उठने लगे हैं. आरोप हैं की नेताओ का खुद का फायदा हो ऐसी भर्तियां की हैं. अभी जब 41 पदों की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठे तो प्रक्रिया स्थगित करनी पड़ी.
2013 के बाद चौदहवीं विधानसभा में लगभग हर साल भर्तियां हुईं हैं. जिनमें रोजगार कार्यालयों से नाम मंगाकर बेरोजगारों को रखा गया. भर्तियों में गड़बड़ी की आशंका इस बात से भी जाहिर होती है कि सूचना का अधिकार में जब एक व्यक्ति ने 2017-18 में हुई सहायक की भर्ती में चयनित लोगों के नाम व उम्र की जानकारी मांगी तो उसे देने से इनकार कर दिया.
चौदहवीं विधानसभा में 2016 तक करीब 36 पदों पर भर्तियां की गईं और इसके बाद लगभग दो दर्जन नियुक्तियां और की गईं. अगस्त 2018 में 41 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई थी. भर्ती हुए कर्मचारियों की सिफारिश राज्य सरकार के कुछ मंत्रियों ने भी की थी. भाजपा के एक पूर्व विधायक ने भी इसी दौरान अपने परिचित को नौकरी पर रखवाने में सफलता हासिल कर ली और इसी पर प्रदेश सरकार सवालो के घेरे में आ गयी हैं. अब देखना यह हैं की प्रदेश सरकार इस पर खुद को कैसे बचाती हैं.
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