भोपाल | बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से उम्मीदवार बनाया है. वह कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ मैदान में उतरी हैं जिन्होंने मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी का नाम आने के बाद इसे भगवा आतंकवाद का नाम दिया था. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह आरएसएस और बीजेपी पर तीखे हमले करने के लिए जाने जाते रहे हैं. वही बीजेपी ने दिग्विजय के सियासी सफर का अंत करने के लिए उसी संत को मैदान में उतार दिया है.
भोपाल 2019 के चुनावी युद्ध का सबसे दिलचस्प मैदान बन चुका है, क्योंकि एक तरफ कांग्रेस से वो दिग्विजय सिंह है जिन पर हिंदू आतंकवाद की थ्योरी गढ़ने का आरोप लगता रहा है तो दूसरी तरफ बीजेपी से वो साध्वी प्रज्ञा ठाकुर हैं जिन्हें हिंदू आतंकवाद की थ्योरी का प्रतीक बनाया गया था, लेकिन 9 साल जेल में रहने के बाद वो जिस तरह से बाहर निकलीं और जिस तरह से हिंदू आतंक के तमाम केस कोर्ट में ढेर हो रहे हैं, फिर चाहे वो मालेगांव ब्लास्ट केस हो या फिर समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस, बीजेपी ने उस वक्त ही संकेत दे दिए थे कि वो हिंदू आतंकवाद की पंक्चर हुई थ्योरी को चुनावी मुद्दा बनाएगी, क्योंकि इस थ्योरी को यूपीए के राज में बहुत हवा दी गई थी और बीजेपी को अब इसके बहाने कांग्रेस को नए सिरे से घेरने का मौका मिला है.
कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि जिस तरह उमा भारती ने दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका था क्या उसी तरह साध्वी प्रज्ञा दिग्विजय की राजनीतिक आकांक्षा पर विराम लगा देंगी. क्योंकि साध्वी प्रज्ञा और उमा भारती में कई समानताएं है. दोनों का विवादों से नाता रहा है. दोनों का पहनावा भी एक ही तरह का है. उमा भारती 1999 में उसी भोपाल से सांसद चुनी गई थीं जहां से साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाया गया है.
साध्वी प्रज्ञा की भोपाल से उम्मीदवारी घोषित होने के बाद दिग्विजय ने जिन सधे शब्दों में उनका स्वागत किया उससे ऐसा लग रहा है कि वह कोई ऐसी बात नहीं करना चाहते जिससे साध्वी को फायदा मिले. ऐसा माना जा रहा है कि उमा भारती के बाद मध्य प्रदेश में बीजेपी को दूसरा फायरब्रांड नेता मिल गया है. दिग्विजय सिंह की कभी कांग्रेस में तूती बोलती थी वह 1993 से लेकर 2003 तक लगातार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. लेकिन 10 साल सीएम रहने के बाद एक साध्वी उमा भारती से दिग्विजय सिंह हार गए थे. भोपाल से साध्वी प्रज्ञा के उतरने के बाद यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या एक बार फिर साध्वी के हाथों ही दिग्विजय की हार होगी या इस बार वह अपना वजूद बचाने में कामयाब होंगे?
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भी उसी तरह की फायर ब्रांड नेता मानी जाती हैं जैसी उमा भारती मानी जाती रही हैं. उमा भारती भी भगवा वस्त्र धारण करती हैं और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का पहनावा भी ठीक वैसा ही है. कटे हुए बाल और, भगवा वस्त्र और गले में रूद्राक्ष की माला उनकी पहचान है. उमा भारती ने घोषणा कर दी है कि वह इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगी ऐसे में 48 साल की साध्वी प्रज्ञा ठाकुर राजनीति में भारती की उत्तराधिकारी भी साबित हो सकती हैं. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का भी संघ से पुराना नाता है. उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में भी काम किया है. प्रज्ञा विश्व हिंदू परिषद की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी से भी जुड़ी रही हैं. उमा भारती की शिक्षा कक्षा छठवीं तक ही हुई है लेकिन साध्वी प्रज्ञा ने एम ए तक पढाई की है.
हालात बदले हुए हैं. दिग्विजय सिंह अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने जब सांसद का चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की थी तो एमपी के सीएम कमलनाथ ने कहा था कि अगर दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ना चाहते हैं तो उन्हें कोई कठिन सीट चुननी चाहिए. भोपाल और इंदौर को कांग्रेस के लिए सबसे कठिन सीट माना जाता है. भोपाल में आखिरी बार 1984 में कांग्रेस का सांसद चुना गया था. 1989 से लेकर 2014 तक लगातार यहां से बीजेपी बाजी मारती रही. ऐसे में दिग्विजय ने भोपाल की चुनौती स्वीकार की. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर दिग्विजय सिंह यह लड़ाई जीत जाते हैं तो उन्हें मुख्यधारा में लाना पार्टी की मजबूरी होगी. लेकिन अगर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर से हार जाते हैं तो फिर उन्हें अपनी जमीन हासिल करने के लिए और कठिन मेहनत करनी होगी. दिग्विजय 72 साल के हो चुके हैं. ऐसे में उनके लिए यह चुनाव और महत्वपूर्ण हो जाता है.
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