भोपाल। मध्य प्रदेश का सबसे चर्चित और ऐतिहासिक चुनाव रहा है,वैसे तो सीधी टक्कर भाजपा कांग्रेस की थी लेकिन सपा के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया है,विगत दस सालों के बाद यहां सपा के एक उम्मीदवार ने अपनी जगह बनाई और खाता खोला,बता दें की इससे पहले 2008 में सपा की एक महिला प्रत्याशी ने जीत का परचम लहराया था,अब सरकार कांग्रेस की बन रही है और सालों बाद फिर समाजवादी पार्टी का एक विधायक विधानसभा पहुंचेगा, इस बार कांग्रेस को सरकार बनाने में बसपा के साथ -साथ सपा ने भी अपना समर्थन दिया है. दस सालों बाद पहला मौका होगा जब समाजवादी पार्टी का कोई विधायक विधानसभा पहुंचेगा।
बसपा के मुकाबले बेहतर नहीं रहा सपा का प्रदर्शन
मध्यप्रदेश की बिजावर सीट ने सपा की लाज बचा ली। लेकिन छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सपा का खाता नहीं खुला ऐसे में सपा को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए लंबा इंतजार करना होगा। इन नतीजों ने यह उम्मीद पूरी नहीं की है, असल में इसी दर्जे के लिए सपा अपने पंख राजस्थान , मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में फैलाना चाहती थी. अखिलेश ने इस साल कई बार मध्यप्रदेश का दौरा किया और सोच विचार कर गोडवाना गणतंत्र पार्टी से समझौता किया, सपा ने 52 प्रत्याशी मध्यप्रदेश व 17 छत्तीसगढ़ में उतारे थे।
2003 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा को मध्यप्रदेश में 7 सीटें व 3.7 प्रतिशत वोट मिला था, अखिलेश ने छत्तीसगढ़ में 10 , मध्य प्रदेश में 15 व राजस्थान में चार जनसभाएं कर माहौल बनाने की कोशिश की थी. पर सपा के लिए अपेक्षित नतीजे नहीं आए। तसल्ली इतनी रही कि भाजपा को इन राज्यों में झटका लगा.
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